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वि द्यामे॑षि॒ रज॑स्पृ॒थ्वहा॒ मिमा॑नो अ॒क्तुभिः॑ । पश्य॒ञ्जन्मा॑नि सूर्य ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vi dyām eṣi rajas pṛthv ahā mimāno aktubhiḥ | paśyañ janmāni sūrya ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि । द्याम् । ए॒षि॒ । रजः॑ । पृ॒थु । अहा॑ । मिमा॑नः । अ॒क्तुभिः॑ । पश्य॑न् । जन्मा॑नि । सू॒र्य॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:1» सूक्त:50» मन्त्र:7 | अष्टक:1» अध्याय:4» वर्ग:8» मन्त्र:2 | मण्डल:1» अनुवाक:9» मन्त्र:7


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह क्या करता है, इस विषय का उपदेश अगले मंत्र में किया है।

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सूर्य्य) चराचराऽत्मन् परमेश्वर ! आप, जैसे सूर्य्य लोक (अक्तुभिः) प्रसिद्ध रात्रियों से (पृथु) विस्तारयुक्त (रजः) लोकसमूह और (अहा) दिनों को (विमानः) निर्माण करता हुआ (पृथु) बड़े-२ (रजः) लोकों को प्राप्त होके नियम व्यवस्था करता है वैसे हम लोगों के (जन्मानि) पहिले पिछले और वर्त्तमान जन्मों को (पश्यन्) देखते हुए (व्येषि) अनेक प्रकार से जानने और प्राप्त होनेवाले हो ॥७॥
भावार्थभाषाः - जिसने सूर्य्य आदि लोक बनाये और सब जीवों के पाप-पुण्य को देख के ठीक-२ उनके सुख-दुःख रूप फलों को देता है वही सबका सत्य-२ न्यायाकारी राजा हैं ऐसा सब मनुष्य जानें ॥७॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

(वि) विशेषार्थे (द्याम्) प्रकाशम् (एषि) (रजः) लोकसमूहम् (पृथु) विस्तीर्णम् (अहा) अहानि दिनानि (मिमानः) प्रक्षिपन् विभजन् (अक्तुभिः) रात्रिभिः (पश्यन्) समीक्षमाणः (जन्मानि) पूर्वापरवर्त्तमानानि (सूर्य्य) चराऽचरात्मन् ॥७॥

अन्वय:

पुनः स किं करोतीत्युपदिश्यते।

पदार्थान्वयभाषाः - हे सूर्य्य जगदीश्वर ! त्वं यथा सविताऽक्तुभिः पृथुरजोऽहा मिमानः सन् पृथुरजः प्राप्य व्यवस्थापयति तथा सर्वतः पश्यन् सर्वेषां जन्मानि व्येषि ॥७॥
भावार्थभाषाः - येन सूर्यादि जगद्रच्यते सर्वेषां जीवानां पापपुण्यानि कर्म्माणि दृष्ट्वा यथायोग्यं तत्फलानि प्रदीयन्ते स एव सर्वेषां सत्यो न्यायधीशो राजास्तीति सर्वैर्मनुष्यैर्मन्तव्यम् ॥७॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - ज्याने सूर्य इत्यादी गोल निर्माण केलेले आहेत व जीवांच्या पापपुण्याप्रमाणे यथायोग्य सुखदुःखरूपी फळ देतो तोच सर्वांचा खराखुरा न्यायी राजा आहे, हे माणसांनी जाणावे. ॥ ७ ॥